CT और PT क्या होता है? (What is CT and PT?)

बिल्कुल! हिंदी में विस्तार से समझते हैं।

CT और PT (या VT) विद्युत प्रणाली के बहुत ही महत्वपूर्ण उपकरण हैं। इनका मुख्य काम मापन (Measurement) और सुरक्षा (Protection) के लिए उच्च वोल्टेज और उच्च करंट को कम और सुरक्षित मान में बदलना है।


1. CT और PT क्या होता है? (What is CT and PT?)

  • CT (Current Transformer) – धारा ट्रांसफार्मर:
    • इसका काम उच्च धारा (High Current) को एक कम और मापने योग्य धारा (Low & Measurable Current) में बदलना है।
    • उदाहरण: जब किसी लाइन में 1000 Ampere का करंट बह रहा होता है, तो CT उसे 5 Ampere या 1 Ampere में बदल देता है, जिसे आम मीटर आसानी से माप सकते हैं।
  • PT (Potential Transformer) या VT (Voltage Transformer) – विभव ट्रांसफार्मर:
    • इसका काम उच्च वोल्टेज (High Voltage) को एक कम और मापने योग्य वोल्टेज (Low & Measurable Voltage) में बदलना है।
    • उदाहरण: जब किसी लाइन पर 11,000 Volts (11kV) का वोल्टेज होता है, तो PT उसे 110 Volts में बदल देता है, जिसे मीटर के लिए सुरक्षित होता है।

2. कहाँ पर / क्यों Use होता है? (Where and Why are they used?)

ये मुख्य रूप से निम्नलिखित जगहों पर इस्तेमाल किए जाते हैं:

  1. सबस्टेशनों (Substations) में: बिजली घरों और डिस्ट्रीब्यूशन सबस्टेशनों में सबसे ज्यादा इस्तेमाल।
  2. मापन के लिए (For Measurement):
    • बिलिंग मीटर (Energy Meters) में: उपभोक्ता को बिल भेजने के लिए ऊर्जा की खपत का सही हिसाब लगाने के लिए।
    • एममीटर (Ammeter), वोल्टमीटर (Voltmeter), वाटमीटर (Wattmeter) आदि को सप्लाई देने के लिए।
  3. सुरक्षा के लिए (For Protection):
    • रिले (Protective Relays) को संचालित करने के लिए। जब लाइन में कोई गलती (जैसे शॉर्ट सर्किट) होती है, तो CT/PT से मिलने वाला सिग्नल रिले को ट्रिप सिग्नल भेजता है, जो सर्किट ब्रेकर को बंद करके सिस्टम को नुकसान से बचाता है।
  4. नियंत्रण प्रणाली (Control Systems) में सिग्नल देने के लिए।

3. कितने प्रकार का होता है? (What are their types?)

CT (धारा ट्रांसफार्मर) के प्रकार:

  1. विंडो टाइप (Window Type): इसमें कोर के बीच एक खिड़की (होल) होती है, जिसमें से मुख्य कंडक्टर (जिसका करंट मापना है) गुजरता है। इसमें सेकेंडरी वाइंडिंग पहले से ही कोर पर लगी होती है।
  2. बार टाइप (Bar Type): यह विंडो टाइप जैसा ही होता है, लेकिन इसमें एक सॉलिड बार (कंडक्टर) पहले से ही ट्रांसफार्मर का हिस्सा होता है।
  3. रिंग टाइप (Ring Type) / वाउंड टाइप (Wound Type): इसमें प्राइमरी और सेकेंडरी, दोनों वाइंडिंग कोर पर लपेटी जाती हैं। यह ज्यादा सटीकता के लिए प्रयोग किया जाता है।

PT (विभव ट्रांसफार्मर) के प्रकार:

  1. इलेक्ट्रोमैग्नेटिक टाइप (Electromagnetic Type): यह एक साधारण ट्रांसफार्मर की तरह ही काम करता है, जिसमें प्राइमरी और सेकेंडरी वाइंडिंग होती हैं।
  2. कैपेसिटिव वोल्टेज टाइप (Capacitive Voltage Transformer – CVT): यह उच्च वोल्टेज सिस्टम (जैसे 132kV, 400kV) में इस्तेमाल होता है। इसमें वोल्टेज को कम करने के लिए कैपेसिटर का उपयोग किया जाता है। यह सस्ता और कुशल होता है।

4. Input-Output के कितने Terminal होते हैं? (Number of Input-Output Terminals)

CT (धारा ट्रांसफार्मर):

  • इनपुट टर्मिनल (Input): CT के इनपुट के लिए कोई अलग टर्मिनल नहीं होता। इसकी प्राइमरी वाइंडिंग वह मुख्य कंडक्टर होता है जिसका करंट मापना है। यह कंडक्टर CT के होल (विंडो) में से सीधा गुजरता है।
  • आउटपुट टर्मिनल (Output): CT के दो आउटपुट टर्मिनल होते हैं। ये सेकेंडरी वाइंडिंग के सिरे होते हैं जहाँ से कम धारा (जैसे 5A या 1A) निकलती है। इन्हें S1 और S2 के नाम से जाना जाता है। इन्हीं टर्मिनलों से मीटर या रिले जोड़े जाते हैं।

PT (विभव ट्रांसफार्मर):

  • इनपुट टर्मिनल (Input): PT के दो इनपुट टर्मिनल होते हैं। ये प्राइमरी वाइंडिंग के सिरे होते हैं जिन्हें उच्च वोल्टेज लाइन (जैसे 11kV) से जोड़ा जाता है। इन्हें H1 और H2 (High Side) कहते हैं।
  • आउटपुट टर्मिनल (Output): PT के दो आउटपुट टर्मिनल होते हैं। ये सेकेंडरी वाइंडिंग के सिरे होते हैं जहाँ से कम वोल्टेज (जैसे 110V) निकलता है। इन्हें X1 और X2 (या S1 और S2) कहते हैं। इन्हीं से मीटर या रिले जुड़ते हैं।

ध्यान रखने वाली महत्वपूर्ण बात: CT के सेकेंडरी टर्मिनलों को कभी भी खुला (Open) नहीं छोड़ना चाहिए। ऐसा करने पर उसमें बहुत अधिक और खतरनाक वोल्टेज पैदा हो सकता है जिससे CT फट भी सकता है और जान को खतरा हो सकता है। हमेशा CT के सेकेंडरी को शॉर्ट-सर्किट करके ही रखना चाहिए अगर उसे उपयोग में नहीं लाया जा रहा है।

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